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मस्तिष्क का हृदय / रॉबर्ट क्रीली
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मष्तिष्क का हृदय, निश्चय ही
कुछ सच रहा है क़ैद
तुम्हारे भीतर ।
या फिर, झूठ, सब
झूठ, और कोई जन नहीं
इतना सच्चा कि जान सके
अन्तर ।