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अकेलापन / रामकृष्‍ण पांडेय

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इसी उम्र में आकर
आदमी हो जाता है अकेला
जिनके साथ शुरू किया होता है चलना
खो जाते हैं वे लोग कहीं न कहीं
सिर्फ़ भीड़ ही चलती है साथ-साथ

जहाँ तक दिखता है
लोग ही लोग नज़र आते हैं
पर नहीं दिखता है
कोई भी चेहरा

किसका हाथ लेकर चले
अपने हाथों में
किसके क़दमों से क़दम मिलाकर चले
ख़ुशी से किसे भींचे अपने सीने में
किसके कन्धों पर सिर रखकर रोए
किसको दे सहारा पकड़कर उँगलियाँ
किसके साथ पार करे यह चौराहा
किसके साथ बैठकर दो घड़ी सुस्ताए
इसी उम्र मेम आकर
आदमी हो जाता है अकेला