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मायावन / रामकृष्ण पांडेय
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यही तो है मायावन
दरअसल जहाँ अन्धेरा है
वहीं से फूटती है
रोशनी की एक नदी
अपनी हलचलों में
समेटती हुई
ज़िन्दगी के तमाम रंगों को
बहती ही जाती है
और जहाँ चुन्धिया रही हैं आँखें
हज़ारों-हज़ार वाटों की रोशनी में
वहीं ठहाके लगाता है अन्धकार
कोई भी नहीं देख पाता है किसी को
अपने तक सिमटा रहता है
उनका वजूद
यही तो है मायावन
अन्धेरे में फूटती है रोशनी
रोशनी में ठहाके लगाता है अन्धकार