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जीवन / रामकृष्ण पांडेय
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सूखे पत्ते की तरह
जिया है मैंने जीवन
कभी इधर कभी उधर
हवा के झोंकों के साथ
उड़ता रहा
कोई संगीत पैदा नहीं किया मैंने
सिर्फ़ मचाया शोर
खड़खड़ खड़खड़
जब भी चला मुझ पर हवा का ज़ोर
अब चाहता हूँ किसी अलाव में जलना
इस सर्द मौसम में
थोड़ी-सी गर्मी पैदा करना