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यहाँ भी / रामकृष्ण पांडेय
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वैसे ही खेत हैं
वैसे ही खटते हैं लोग
वैसे ही अधनंगी है इनकी काया,
इनकी झोपड़ियाँ भी वैसी ही हैं
वैसे ही हड्डी-हड्डी हैं उनके गाय-बैल
वैसे ही सताती होगी इन्हें भी
भूख-प्यास, धूप-वर्षा