भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वाद / शंकरानंद

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:01, 16 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शंकरानंद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पानी का जन्म धूप के लिए हुआ या प्यास के लिए

कुछ भी नहीं बचा जो नहीं मिला इसमें
फिर भी कण्ठ को इसका इंतज़ार है

स्वाद की स्मृति अब इतनी पुरानी हो गई कि
कुछ पता नहीं चलता

या फिर जीवन इतना गन्दला हो गया है कि
सब कुछ एक जैसा लगता है ।