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स्वाद / शंकरानंद
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पानी का जन्म धूप के लिए हुआ या प्यास के लिए
कुछ भी नहीं बचा जो नहीं मिला इसमें
फिर भी कण्ठ को इसका इंतज़ार है
स्वाद की स्मृति अब इतनी पुरानी हो गई कि
कुछ पता नहीं चलता
या फिर जीवन इतना गन्दला हो गया है कि
सब कुछ एक जैसा लगता है ।