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पर्यावरण-1 / राजा खुगशाल

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वह जैसा था
वैसा ही गूँजता रहा हवा में
उसकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया
और न इसके लिए उसने
किसी तरह का कोई वातावरण रचा

वह उठा
और चुपचाप चला गया सभा-कक्ष से
सड़क पर बस की प्रतीक्षा में उसने पाया
अमलतास का दरख़्त नीला
और आसमान हरा

उसने देखा पृथ्वी की चिन्ता में
भाप उठने लगी है समुद्रों से
धरती से भू-उपग्रहों की ओर
पहले कुछ पत्ते उड़े, फिर थोड़े से लोग
फिर बारिश में घुलने लगा
वक़्त का बुझा हुआ चेहरा ।