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अनन्त में मौन / राजा खुगशाल

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स्व० शमशेर जी के प्रति सादर

कुछ दूर गए शमशेर
और फिर रुक गए
जैसे कह रहे हों --
मुझे एक कहकशाँ कहना है
इस रात के साए से

जैसे कह रहे हों --
कहाँ सीढ़ियाँ उतरने की
ज़हमत उठाए चाँद
मैं अकेला पार कर लूँगा पर्वत

परत-दर-परत
कितना ठोस, कितना स्वच्छ
कितना चमकदार है आसमान
'आसमान में गंगा की रेत
आइने की तरह चमक रही है ।'

क़दम-दर-क़दम
फिर मुखरित है अनन्त में मौन ।