भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कबीर के लिए / राजा खुगशाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:12, 12 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजा खुगशाल |अनुवादक= |संग्रह=पहा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह न हिन्दू है
न मुसलमान
वह आदमी है, मामूली आदमी
सीधा-सच्चा आदमी
अपनी तरह का एक बेलौस आदमी

वह सिर्फ़ सन्त नहीं है
सिद्ध नहीं है
पीर नहीं है
पैगम्बर नहीं है
न वह पण्डित है
न पुजारी
वह एक कारीगर है, मामूली कारीगर
जो कपड़े बुनता है करघे पर
तजुरबे के ताने-बाने से
बुनता है अपनी कविताएँ

वह लिखना नहीं जानता
पढ़ना नहीं जानता
वह अनपढ़ है
फकीर है
लेकिन कवि है
सच्चे अर्थों मे कवि

ऐसा कवि
जिसकी कविता की अहमियत
सबसे अधिक है आज
ऐसा कवि
जिसने कठिन समय में
ईश्वर और इन्सान में
इन्सान को चुना

गुरु और गोविन्द में
गुरु को
शास्त्र और सबद में
सबद को
सहज-असहज में
सहज को चुना

ऐसा कवि
जिसके लिए कोई फ़र्क नहीं है
राम और रहीम में
जो शहर-दर-शहर
गाँव-दर-गाँव घूम-घूम कर
अलख जगाता है प्रेम की ।