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आप क्यूँ शर्मसार होते हैं / कांतिमोहन 'सोज़'

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आप क्यूँ शर्मसार<ref>शर्मिन्दा</ref> होते हैं।
हम-से धरती पे बार होते हैं।।

मिट गए आपकी करीमी से
हादिसा<ref>दुर्घटना</ref> था, हज़ार होते हैं।

आपके फैज़ से भगोड़े भी
बिस्मिलों<ref>घायल, शहीद</ref> में शुमार होते हैं।

ऐसे हाथों से बाख़बर रहिए
जिनमें फूलों के हार होते हैं।

क्यूँ ज़ियारत<ref>पवित्र स्थान की यात्रा</ref> न हो बुतों के दिल
आशिक़ों के मज़ार होते हैं।

लोग क्यूँ उसकी जान बख्शेंगे
आप जिस पर निसार होते हैं।

क़ाबिले-दार<ref>फांसी के लायक़</ref> सोज़ को समझा
लीजिए ज़ेरबार<ref>कृतज्ञ</ref> होते हैं।।

शब्दार्थ
<references/>