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आपकी शोलमिज़ाजी को अदा मानते हैं / कांतिमोहन 'सोज़'

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आपकी शोलमिज़ाजी<ref>आग उगलने की आदत</ref> को अदा मानते हैं ।
ये अगर जानते हैं आप तो क्या जानते हैं ।।

इतने भोले भी नहीं साँप को सीढ़ी समझें
साकिने-फर्श<ref>धरती के वासी</ref> हैं अफ़लाक<ref>आसमान</ref> को पहचानते हैं ।

हम ममोलों<ref>एक नन्हा शान्तिप्रिय पक्षी</ref> को लड़ा देते हैं शहबाज़ों<ref>शिकारी पक्षी बाज़</ref> से
खिश्ते--दुशनाम पे हम संगे-सुख़न तानते हैं ।

आपके तौक़ो सलासिल<ref>गले का तौक़ और पैरों की बेड़ी</ref> हों कि हों दारो-रसन<ref>फाँसी का तख्ता और फंदा</ref>
आशिक़े-ज़ीस्त कहीं मौत को गरदानते हैं ।

ज़र्र-ए-ख़ाक हैं पापोश<ref>पैर की जूती</ref> हैं नाचीज़ हैं हम
बर्क़<ref>बिजली</ref> बन जानते हैं पल-भर में अगर ठानते हैं ।

जो भी कहता है ज़माना वो बजा होता है
हर ज़माने की भले लोग इसे मानते हैं ।

सोज़ को जाननेवालों की ज़रूरत क्या है
आप कैसे हैं अगर लोग इसे जानते हैं ।।


शब्दार्थ
<references/>