भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ पहले इन आँखों आगे क्या / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:42, 29 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ }} Category:गज़ल कुछ पहले इन आँखों आगे क्य...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ पहले इन आँखों आगे क्या क्या न नज़ारा गुज़रे था
क्या रौशन हो जाती थी गली जब यार हमारा गुज़रे था

थे कितने अच्छे लोग कि जिनको अपने ग़म से फ़ुर्सत थी
सब पूछें थे अहवाल जो कोई दर्द का मारा गुज़रे था

अब के तो ख़िज़ाँ ऐसी ठहरी वो सारे ज़माने भूल गये
जब मौसम-ए-गुल हर फेरे में आ आ के दुबारा गुज़रे था

थी यारों की बहुतात तो हम अग़यार से भी बेज़ार न थे
जब मिल बैठे तो दुश्मन का भी साथ गवारा गुज़रे था

अब तो हाथ सुझाई न देवे लेकिन अब से पहले तो
आंख उठते ही एक नज़र में आलम सारा गुज़रे था