भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बच्चा होना, कितना अच्छा / अनंतप्रसाद ‘रामभरोसे’
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:01, 27 सितम्बर 2015 का अवतरण
बच्चों के संग बच्चा होना
कितना अच्छा लगता है!
कभी खेल में हँसना गाना
ता-ता थैया नाच दिखाना,
और कभी नाराज सभी से
हो जाना, फिर मुँह लटकाना।
झूठ-मूठ ऊँ-ऊँ कर रोना
कितना अच्छा लगता है!
गाल फुला आँखें मिचकाना
करना काम कभी बचकाना,
बंदर जैसी हरकत करके
कभी डराना फिर भग जाना।
खाना झूठ मूठ ले दौना
कितना अच्छा लगता है!
कल्लू नीनू चुन्नू-दीनू
के संग मिलकर गप्प लड़ाना,
इंजन बनकर छुक-छुक करना
या टिक-टिक घोड़ा बन जाना।
ऊपर लाद सभी को ढोना
कितना अच्छा लगता है!