भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पापा की ऐनक / निशेष ज़ार
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:07, 28 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=निशेष ज़ार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <po...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पापा जी की प्यारी ऐनक,
जरा हमें बतलाओ तो-
हमको तो गोदी में पापा
कभी-कभी बिठलाते हैं,
तुम्हें नाक पर चढ़ा हमेशा
पुस्तक में खो जाते हैं।
घर से बाहर भी जब जाते
साथ तुम्हें ले जाते हैं,
हम तुमको छूना चाहें तो
गुस्सा भी हो जाते हैं।
आखिर क्या है तुममें ऐसा,
हमको भी समझाओ तो!