भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आस को रोकना / वीरेंद्र मिश्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:48, 28 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेंद्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आस को रोकना
पीड़ा के नगर-द्वारों पर
      खड़े पहरा देना
अश्रु की राह में
आए अगर सपन कोई
      उसे ठुकरा देना
हाथ से छूट पड़ी जल में किसी गागर ने
      डूबते वक़्त कहा --
गीत जो शेष रहे फूल में शबनम की तरह
      उसे बिखरा देना
तीर्थ सागर का करे ओस अगर मरुथल में
      उसे दफ़ना देना ।