भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मामी कहाँ हमारी / हरीश निगम
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:19, 30 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश निगम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चंदा मामा! चंदा मामा
मामी कहाँ हमारी?
रोज अकेले आते हो,
मामी को ना लाते हो,
सच्ची-सच्ची
बात बताओ
ऐसी क्या लाचारी?
क्या वो काली-काली हैं
शायद नखरे वाली हैं
या फिर उनकी
ठीक समय पर
होती ना तैयारी?
या वो मस्त कलंदर हैं?
परियों जैसी सुंदर हैं!
सोच रहे तुम
देख रहे कब से रस्ता,
सपनों का खोले बस्ता,
कभी किसी दिन
हमें दिखा दो
मामी प्यारी-प्यारी!