भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सूरज लगे आग का गोला / हरि मृदुल

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:23, 30 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरि मृदुल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

सूरज लगे आग का गोला
चंदा लगे कटोरी,
सूरज किरनें पीला सोना
लगे चाँदनी गोरी।
बड़ा अनोखा इंद्रधनुष है
सतरंगा चमकीला,
गोल-गोल कुछ झुका-झुका-सा
रंग-बिरंगा टीला।
ये पतंग है कैसी जिसकी
दीख पड़े ना डोरी!
आसमान में पंछी उड़ते
ऐसे साँझ-सवेरे,
लटक रही हो रस्सी जैसे
घर के ऊपर मेरे।
करे न कोई आपाधापी
करे न जोरा-जोरी!
कभी-कभी बादल आ जाते
जैसे धुनी रुई,
किसने धुना, कौन बतलाए
बातें हवा हुईं।
कौन बुलाता, कौन भेजता
इनको चोरी-चोरी!