भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुड्ढा गुड्डा / सूर्यकुमार पांडेय

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:30, 30 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकुमार पांडेय |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

था पहले यह कितना छोटा,
हट्टा-कट्टा-मोटा - मोटा।

मगर हो गया अब बुड्ढा,
मेरी इस गुड़िया का गुड्डा।

दाँत गिर गए मुँह से सारे,
काँप रहा सरदी के मारे।

चाँदी जैसे बाल हो गए,
पिचके-पिचके गाल हो गए।

हरदम बैठा ही रहता है,
मेरी गुड़िया से कहता है।

चलो चटपटी चीज बनाओ,
सुंदर-सा पकवान खिलाओ।

काम न करता इक्का-दुक्का,
गुड़-गुड़ पीता रहता हुक्का।

बुड्ढा - गुड्डा, गुड्डा - बुड्ढा।