भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बताशे पानी के / सुंदरलाल 'अरुणेश'

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:37, 30 सितम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुंदरलाल अरुणेश |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मजे़दार लगते हैं कितने यार! बताशे पानी के,
देता लच्छूराम रुपए में चार बताशे पानी के।

इनका पानी याद करो, तो मुँह में भर आता पानी,
इन्हें गोलगप्पा भी कहते, सूरत जानी-पहचानी।

इसीलिए पाते हैं सबका प्यार, बताशे पानी के,
मजेदार लगते हैं कितने यार! बताशे पानी के।

थोड़ी मिली खटाई इसमें, खुशबूदार मसाला है,
टिक्की, खस्ता से भी बढ़कर इनका स्वाद निराला है।

पापड़ जैसे कड़क-कुरमुरे यार बताशे पानी के,
मजेदार लगते हैं कितने यार! बताशे पानी के।

देर नहीं लगती है, मुँह में रखते ही ये घुल जाते,
कभी-कभी मम्मी-पापा भी इन्हें देखकर ललचाते।

खाओ भी चटपटे जायकेदार बताशे पानी के,
मजेदार लगते हैं कितने यार! बताशे पानी के।