भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बापू / बलबीर सिंह 'रंग'
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:31, 3 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बलबीर सिंह 'रंग' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चरवाहे-सी लाठी पकड़े, चिकनी पतली छोटी,
बप्पा जैसी घड़ी कमर में, ताऊ जैसी धोती।
मुंशी जी की तरह लगी है, ऐनक भी आँखों पर,
तेरी जैसी चप्पल पहने, नानी जैसी चादर।
चेहरे से लगता है, मानो कई जन्म से मौन हैं।
अम्माँ! बतला दे मुझको-‘यह बाबा जैसे कौन हैं?’
ये जीवन की कर्मभूमि में कर्मवीर बन आए,
ये दुख की दोपहरी में, सुख के समीर बन आए।
ये आए हैं मानवता के सोए-भाग्य जगाने,
ये आए हैं दुखिया धरती-माँ के फंद छुड़ाने।
सत्य-बीन से राग अहिंसा का हैं मंत्र सुनाते,
मोहन के हैं दास, विश्व के ‘बापू’ हैं कहलाते।
-साभार: रंग की राष्ट्रीय कविताएँ, 307