भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किस्से का किस्सा / नईम

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:59, 4 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नईम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita}} <poem>द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दादी का हो या नानी का,
राजा का हो या रानी का,
किस्सा बस किस्सा होता है!

बूढ़े सुनते हों, या बच्चे,
किस्से झूठे हों या सच्चे,
सबका ही हिस्सा होता है!

कभी हँसाता, कभी रुलाता,
दूर भगाता, पास बुलाता,
किस्सा क्या घिस्सा होता है!

-साभार: पराग, जून 1978, 4