भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बारहा गोर दिल झुका लाया / मीर तक़ी 'मीर'

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:12, 30 जनवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीर तक़ी 'मीर' }} बारहा गोर दिल् झुका लाया<br> अब के शर्त-ए-...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बारहा गोर दिल् झुका लाया
अब के शर्त-ए-वफ़ा बजा लाया

क़दर रखती न थी मिता-ए-दिल
सारे आलम को मैं दिखा लाया

दिल के यक क़तरा-ए-ख़ून नहीं है बेश
एक आलम के सर बला लाया

सब पे जिस बार ने गिरानी की
उसको ये नातवाँ उठा लाया

दिल मुझे उस गली में ले जा कर
और भी ख़ाक में मिला लाया

अब तो जाते हैं बुतकदे अए 'मीर'
फिर मिलेंगे अगर ख़ुदा लाया