Last modified on 5 अक्टूबर 2015, at 18:49

कर दो हड़ताल / योगेंद्रकुमार लल्ला

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:49, 5 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=योगेंद्रकुमार लल्ला |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कर दो जी, कर दो हड़ताल,
पढ़ने-लिखने की हो टाल।
बच्चे घर पर मौज उड़ाएँ,
पापा-मम्मी पढ़ने जाएँ।

मिट जाए जी का जंजाल,
कर दो जी, कर दो हड़ताल!

जो न हमारी माने बात,
उसके बाँधो कस कर हाथ!
कर दो उसको घोटम-घोट,
पहनाकर केवल लंगोट।

भेजो उसको नैनीताल,
कर दो जी, कर दो हड़ताल!

राशन में भी करो सुधार,
रसगुल्लों क हो भरमार।
दो दिन में कम से कम एक,
मिले बड़ा-सा मीठा केक!

लड्डू हो जैसे फुटबाल,
कर दो जी, कर दो हड़ताल!

हम भी अब जाएँगे दफ्तर,
बैठेंगे कुरसी पर डटकर!
जो हमको दे बिस्कुट टॉफी,
उसको सात खून की माफी।

अपना है बस, यही सवाल,
कर दो जी, कर दो हड़ताल!