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मैं बन जाऊँ तितली / श्यामकुमार दास
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इधर घूमती, उधर घूमती
इक नन्ही-सी तितली,
जाने किसको ढूँढ़ रही है
इक नन्ही-सी तितली।
कभी चली आती चौखट पर
कभी ठिठक रह जाती,
कभी घूमती मेरे सिर पर
गुन-गुन गाना गाती।
लगता सुध-बुध भूल गई हो,
इक नन्ही-सी तितली।
रंग-बिरंगे पंख हैं उसके
सिर पर है शृंगार,
रंग-बिरंगे फूलों पर ही
जाती है हर बार।
फूलों के संग घुल-मिल जाती,
इक नन्ही-सी तितली।
मेरे भी दो पंख हों ऐसे
दूर-दूर उड़ जाऊँ,
फूलों से खुशबू लेकर मैं
इधर-उधर फैलाऊँ।
बच्चे मेरे पीछे दौड़ें,
मैं बन जाऊँ तितली!