भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

क्या भूलूँ, क्या याद करूँ / रामजी मिश्र

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:04, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामजी मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पता नहीं क्यों बार-बार यह,
इम्तहान यों आ जाता है,
सुख से मुसकाते फूलों पर,
दुःख का बादल छा जाता है।
सूरज कहता है-उठो, चलो,
मैदान बुलाते हैं तुमको,
खेलों से रूठे बैठे हो,
वे खेल बुलाते हैं तुमको।

तुम भूल गए इस मौसम को
कोयल पुकारकर कहती है,
अमिया की डालें झुका-झुका
कब से बयार यह बहती है।
मौसम कहता है देखो तो
मैं तुम्हें बुलाने आया हूँ,
बागों में बन बसंत प्यारा,
सब फूल खिलाने आया हूँ।

ये पप्पू, पिंटू, डिंगू भी
आखिर संगी-साथी ठहरे,
तुम इन्हें छोड़कर राहों में
क्यों पढ़ने में डूबे गहरे?
भगवान, बता दो तुम मुझको
कैसे सबको नाराज़ करूँ?
खुशियों से रूठूँ, मन मारूँ-
क्या भूलूँ-क्या-क्या याद करूँ?

-साभार: पराग, मई 1978, 10