भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कैसी मुश्किल आई / मधु भारतीय
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:39, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधु भारतीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaa...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कैसी मुश्किल आई!
हँसता हूँ तो बाबा कहते,
‘मत बंदर से दाँत दिखाओ।’
चुप रहने पर दादी कहती,
‘राजा बेटा हो, मुस्काओ!’
किसकी मानूँ, भाई
कैसी मुश्किल आई?
उछलूँ, कूदूँ, दौडूँ तो, झट-
गिरने का सब डर दिखलाते
खेल-कूदकर स्वस्थ रहोगे
मुझे गुरु जी यह समझाते
किसमें है-सच्चाई?
कैसी मुश्किल आई!
मम्मी कहती, ‘टॉफी दूँगी
दूध अगर सब पी जाओगे।’
पापा कहते, रेल न दूँगा,
चीज़ देख यदि ललचाओगे!’
किसकी करूँ बड़ाई,
कैसी मुश्किल आई!