भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मक्की और चक्की / जगदीशचंद्र शर्मा
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:35, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीशचंद्र शर्मा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हिरन कहीं से लेकर आया
बोरे में भर मक्की,
उसकी घरवाली जंगल में
लगी पीसने चक्की।
निकला कोई शेर उधर से
करने सैर-सपाटा,
प्राण बचाकर हिरनी भागी
धरा रह गया आटा।