भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फुलझड़ियाँ / प्रेमकिशोर 'पटाखा'
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:49, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमकिशोर 'पटाखा' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बैठा तार सितार पर
मच्छर गाता गीत,
टाँग तार से लड़ गई
साथ बजा संगीत।
कान उठे ऊपर तने
तुरंत भर गया जोश,
उठी ऊँट की पीठ तब
जब बैठा खरगोश।
टेलीविजन पर दिखलाए
गुच्छे अंगूरों के,
देख लोमड़ी खाने लपकी
भालू उसको रोके-
‘यह सच्चे अंगूर नहीं हैं
है झूठा आकर्षण,
भेंट अरे दूरदर्शन की है
करो दूर से दर्शन।’
-साभार: पराग, मार्च, 1980, 29