भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चंदा मामा की शान / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:34, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालस्वरूप राही |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चंदा मामा कहो तुम्हारी
शान पुरानी कहाँ गई?
कात रही थी बैठी चरखा
बुढ़िया नानी कहाँ गई?
सूरज से रोशनी चुराकर
चाहे जितनी भी लाओ,
हमें तुम्हारी चाल पता है
अब मत हमको बहकाओ!
है उधार की चमक-दमक यह
नकली शान निराली है,
समझ गए हम चंदामामा
रूप तुम्हारा जाली है!