भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रंग जमाया टी.वी. ने / बालस्वरूप राही
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:40, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालस्वरूप राही |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फीके पड़े तमाशे सारे, रंग जमाया टी.वी ने!
ए बी सी डी ई एफ जी,
फिल्मों की है धूम मची,
सबने इतवारों की शाम,
कर डाली टी.वी के नाम,
सैर सपाटे, खेल-कूद का किया सफ़ाया टी.वी. ने!
टिक-टिक टिक रे, टिक टिक टिक,
आता जब धारावाहिक,
बैठक में सब जम जाते,
काम-काज सब थम जाते,
पढ़ने-लिखने के चक्कर से हमें बचाया टी.वी. ने!
अ आ इ ई उ ऊ ए,
छुटकू भी टी.वी, घूरे,
निक्कर तक न सँभलता है,
टी.वी. देख मचलता है,
बच्चा हो या बड़ा, सभी को खूब रिझाया टी.वी. ने!