भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चिड़िया आओ / रमेशचंद्र पंत
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:43, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेशचंद्र पंत |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हुआ सवेरा, चिड़िया आओ
खिड़की से भीतर घुस आओ,
दादा जी हैं गए टहलने
चलो, बैठ कुर्सी पर जाओ।
आया है अखबार अभी ही
इसे मेज पर रख फैलाओ
अलमारी में ऐनक उनकी
उसे आँख पर जरा चढ़ाओ।
नंदन-वन की खबर चटपटी
ढूँढ़-ढूँढ़कर हमें सुनाओ,
कौए ने की क्या शैतानी
कुछ बुलबुल के हाल सुनाओ।
मैना की शादी में कितने
बाराती थे, जरा बताओ,
हरे रंग के तोते जी की
लाल चोंच क्यों, राज बताओ।
बगुले जी क्यों मौन खड़े हैं
एक पैर पर, जरा बताओ,
रहना दूर नजर से उनकी
सभी मछलियों को समझाओ!
सुबह-सुबह ना डाँट खिलाओ,
खुली हुई है खिड़की, ऊपर
दूर गगन में तुम उड़ जाओ।