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दिन में कभी आराम नहीं है / कांतिमोहन 'सोज़'
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दिन में कभी आराम नहीं है ।
दर्द की लेकिन शाम नहीं है ।
पी के लहू परवान चढ़ेगा
इश्क़ है ये इल्हाम नहीं है ।
शख़्स है वो मख़्सूस यक़ीनन
राहे-मोहब्बत आम नहीं है ।
आज तो सूरज क्या निकलेगा
हाथ में अपने जाम नहीं है ।
आप सफ़ाई क्यूँ देते हैं
आप पे कुछ इलज़ाम नहीं है ।
काश कोई तातील<ref>छुट्टी</ref> ही होती
आज तो कोई काम नहीं है ।
दम लेकर चलना है आगे
सोज़ अभी नाकाम नहीं है ।।
शब्दार्थ
<references/>