भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओढ़ रजाई / देवेंद्र कुमार 'देव'

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:40, 7 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवेंद्र कुमार 'देव' |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चिक्कड़-बम भई चिक्कड़-बम,
मौसम ठंडा, चाय गरम!
चिक्कड़-बम भई, चिक्कड़-बम!

ठिठुरन झेली चंदा ने
ओढ़ रजाई सोए हम,
चिक्कड़-बम भई चिक्कड़ बम!

सूरज काँपे थर-थर-थर,
हवा गा रही रम पम पम,
चिक्कड़-बम भई चिक्कड़ बम!

कौन भला निकले बाहर
कोहरा ठोंक रहा है खम
चिक्कड़-बम भई चिक्कड़ बम!

-साभार: नंदन जनवरी 1997, 18