भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सर्कस का शेर / सरला जैन
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:19, 7 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सरला जैन |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavi...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
भागा जब सर्कस का शेर
की उसने जंगल की सैर।
मिला उसे गीदड़ मुँहजोर
उसने शीघ्र मचाया शोर।
सुनो शहर से आया जोकर
रिंग मास्टर का यह नौकर।
रहा न अब यह वन का राजा,
चलो बजाएँ इसका बाजा।
सुनकर शेर बहुत शरमाया,
फिर सर्कस में वापस आया।
-साभार: हीरोज क्लब पत्रिका, इलाहाबाद