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मेरी अलमारी / मोहम्मद फहीम

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बहुत बड़ी मेरी अलमारी,
चीजें उसमें रक्खीं सारी!

सबके ऊपर रक्खा बस्ता,
और बगल में है गुलदस्ता।
पास उसी के फोटू मेरा,
रसगुल्ले-सा दिखता चेहरा।

नीचे गाड़ी चाबी वाली,
गुड्डा रोज़ बजाए ताली।
रक्खी हँसने वाली गुड़िया,
खट-मिट्ठे चूरन की पुड़िया।
रंग-बिरंगी कई किताबें,
कुछ हैं बिल्कुल नई किताबें!

कुछ तो मेरा ज्ञान बढ़ातीं
कुछ है मेरा मन बहलाती!
बैट-बॉल है सबसे नीचे,
है मोबाइल-गेम भी पीछे!

तुम्हें दिखा दीं चीजे़े सारी,
अच्छा, बंद करूँ अलमारी,