भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तेरो कोई न रोकण हार / मीराबाई
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:41, 13 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तेरो कोई न रोकण हार
मगन होय मीरा चली
लाज सरम कुल की मर्यादा
सिर सों दूर करी
मान अपमान दोउ धर पटके
निकसी हूं ग्यान गली
मगन होय मीरा चली
तेरो...
ऊंची अटरिया लाज किवड़िया
निरगुन सेज बिछी
पचरंगी सेज झालर सुभा सोहे
फूलन फूल कली
मगन होय मीरा चली
तेरो...
सेज सुख मणा जीरा सोवे
सुभ है आज धरी
तुम जाओ राणा घर अपणे
मेरी तेरी न सरी
मगन होय मीरा चली!