Last modified on 14 अक्टूबर 2015, at 05:25

पुनरावर्त्तन / नीरा परमार

Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:25, 14 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरा परमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कहीं कोई पत्ता भी नहीं खड़केगा
हर बार की तरह ऐसे ही सुलगते पलाश
रक्त की चादर ओढ़े
चीलों और गिद्धों को खींच ले आएंगे

घेर कर मारे जाने वाले
प्रेमरत जोड़ों को
कुचलने के लिए उठा हुआ पत्थर
अपने सम्पूर्ण खौफ
पूरे वजूद के साथ
पत्थर-युग की हिश्र
कबिलाई जुनून लिए
इसी बीसवीं सदी के जंगल में दहाड़ता है

खामोश!
ऐसे ही कुचल दिए जाते रहोगे
ऐसे ही जलती लकड़ियों से
प्रेम को नंगा कर
दोजखी आग से
झुलसा दिया जाता रहेगा!

किसकी
आखिर किसकी इजाजत से
तुमने अपने माथे पर प्रेम का कलंक लगाया
हद है नाफरमानी की
तुम्हें हमने अखाड़े दिए
खूनी संघर्षों की गलाकाट होड़ के
तुम
इस धर्म जाति नस्ल नीति नाम के
बाड़ों-रेबड़ से अलग हो
इन्सानी बोली बोलने लगे
सुनो नसीहत लो
कहीं कुछ भी नहीं बदला
इस होते रहने के बदले
कहीं खरोंच भी नहीं आएगी
तुम्हारे विरुद्ध उठा हुआ पत्थर
गवाह रहेगा
एक दिन समय के बनैले तीखे दांत
सारी घटनाओं
तथ्यों सबूतों गवाहियों
आक्रोशों-प्रतिरोधों को चट कर जाएंगे
दूर-दूर तक
हवा में कहीं कोई
गंध
कोई सुगबुगाहट तक नहीं होगी!

(नोट: हजारीबाग जिले के हेंदेगढ़ा में घटित ‘महावीर राम, मालती महतो प्रकरण’ से सम्बन्धित। महावीर राम, हरिजन युवक ने मालती महतो से जब प्रेम-विवाह कर लियातो बिरादरी वालों ने महावीर राम को पत्थरों से कुचल कर मार दिया तथा मालती महतों के नंगे बदन पर जती लकड़ियों से प्रहार कर उसे प्रताड़ित किया। इसी संदर्भ में है यह कविता।)