भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाँच : पाँचवे पुरखे की कथा / धूमिल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उनके लिए पूजा-पाठ :

केवल ढकोसला था

ऎसे अहिंसक कि--

उनकी बन्दूक में
बया का घोंसला था


ऎसे थे संयमी कि--

औरत जो एक बार
जांघ से उतर गई
उनके लिए मर गई
चतुरी चमार की
लटुरी पतौह को

xxxxxxxxxxxx

रात भर जूझते हैं देह के अंधेरे में

और सुबह हम अपनी

खाइयाँ

बदल लेते हैं ।

xxxxxxxxxxxxx

अगर वह अपनी छाती पर एक कील

गाड़ने दे तो सोचता हूँ--

उस भूखे लड़के की देह पर एक तख़्ती लटका

दूँ ।

"यह 'संसद' है--

यहाँ शोर करना सख्त मना है ।"