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क़त्ल हुआ बचपन / मनोज चौहान

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रोज की ही तरह,
वो गए थे स्कूल<ref>16दिसम्बर, 2014 को पाकिस्तान के पेशावर में आर्मी स्कूल में हुए हमले से आहत होकर लिखी गई रचना</ref>,
ये सोच कर कि शायद,
मिलेगा आज भी कुछ,
नया सीखने को।

वो लेकर लौटेगें,
कुछ नई बातें,
इस उम्मीद के साथ भी,
माँ ने किया था तैयार उन्हें,
करवाया था सुबह का नास्ता।

और फिर ममता से भरे,
उस चितिंत ह्रदय ने,
कितनी ही बार समझाया,
कि बेटा शरारत मत करना,
पढ़ाई करना मन लगाकर ।



मगर नहीं जानता था,
उस माँ का ह्रदय,
कि नहीं लौटेगा,
उसके जिगर का टुकड़ा,
दोपहर के बाद घर को ।

वो चड. जाएगा भेंट,
उन चन्द लोंगों की,
बीमार मानसिकता का,
जिसे वो जेहाद का नाम देकर,
कत्ल कर देतें हैं,
मासूम बचपन को भी ।

मजहब के नाम पर,
ये गुमराह लोग,
क्यों बन बैठे हैं पाषाण
जो कर रहें हैं लज्जित
उस माँ की कोख को,
जिसने इन्हे,
कभी दिया था जीवन।

शब्दार्थ
<references/>