भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविता: एक (बुनियादी तौर पर...) / अनिता भारती
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:58, 16 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिता भारती |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatStreeVim...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।
बुनियादी तौर पर हर औरत
मन से स्वतंत्र होती है
उसे नहीं भाता ढोंग
पर फिर भी करती है
लम्बा टिकुला
चूड़ी-भरे हाथ
सिन्दूर से भरा माथा
उसे कभी नहीं लुभा पाता
फिर भी करती है अभिनय
इसमें रचे-बसे रहने का
क्योंकि यही वह रास्ता है
उसके जीने का...!