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बदले भला कहाँ / किशोर काबरा
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बदले भला कहाँ सेहालात इस शहर के।।
वादे तुम्हारे सारे आँसू हुए मगर के।।
ऐसी पड़ी डकैती, चौपट हुई है खेती
केवल बची है रेती पैंदी में इस नहर के ।
घी-दूथ आसमाँ पर, पानीगया रसातल
बस, सामने हमारा प्याले बचे जहर के।
डूबी हमारी कश्ती, टूटी हमारी नावें
बहना पड़ेगा सबको अब साथ में लहर के।
सब जल गए हैं पत्ते, फल-फूल बिक चुके हैं
मौसम भला करे क्या इस बाग में ठहर के।
तूफान क्या उठ बस, ज्वालामुखी फटा है
संकेत हो रहे हैं, सब आखरी प्रहर के।