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जा पास मौलवी के / रामावतार त्यागी

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जा पास मौलवी के या पूछ जोगियों से।

सूराख पत्थरों में होते न उँगलियों से ।


तिनके उछालते तो बरसों गुज़र गए हैं

अब खेल कुछ नया-सा तू खेल आँधियों से ।


मौसम के साथ भी क्या कुछ बदल गया हूँ

हर रोज पूछता हूँ मैं ये पड़ोसियों से ।


जिस काम के लिए कुछ अल्फाज ही बहुत थे

वह काम ले रहा हूँ इस वक्त गालियों से ।