भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
घणी अबखाई है / नीरज दइया
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:22, 22 अक्टूबर 2015 का अवतरण
घणी अबखाई है
म्हैं लिखणो चावूं
किणी चिड़कली माथै
अर लिखीजै-
रूंख अर आभै माथै!
प्रेम-पोथी खोलण री सोचूं
निजर आवै
घर में ऊंदरा घणा हुयग्या है
पोथ्यां री अलमारी में
कसारियां अर चिलचट्टा
अर म्हैं लिखण लागूं
प्रेम माथै नीं
ऊदई माथै कविता!
कविता किंयां लिखीजै?
इण माथै कोई किताब कोनी।
कविता क्यूं लिखीजै
इण माथै कोई जबाब कोनी।
घणी अबखाई है
मगज इत्तै उळझाड़ में है
कै बगत ई कोनी
हाथ इत्तो तंग है
कै उरलो हुयां सोचसां-
आ अबखाई क्यूं है?