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घणी अबखाई है / नीरज दइया

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घणी अबखाई है
म्हैं लिखणो चावूं
किणी चिड़कली माथै
अर लिखीजै-
रूंख अर आभै माथै!

प्रेम-पोथी खोलण री सोचूं
निजर आवै
घर में ऊंदरा घणा हुयग्या है
पोथ्यां री अलमारी में
कसारियां अर चिलचट्‍टा
अर म्हैं लिखण लागूं
प्रेम माथै नीं
ऊदई माथै कविता!

कविता किंयां लिखीजै?
इण माथै कोई किताब कोनी।
कविता क्यूं लिखीजै
इण माथै कोई जबाब कोनी।

घणी अबखाई है
मगज इत्तै उळझाड़ में है
कै बगत ई कोनी
हाथ इत्तो तंग है
कै उरलो हुयां सोचसां-
आ अबखाई क्यूं है?