जा कहियो उन से नसीम-ए-सहर / ज़फ़र
ज कहियो उन से नसीम-ए-सहर मेरा चैन गया मेरी नींद गई
तुम्हें मेरी न मुझ को तुम्हारी ख़बर मेरा चैन गया मेरी नींद गई
न हरम में तुम्हारे यार पता न सुराग़ दैर में है मिलता
कहाँ जा के देखूँ मैं जाऊँ किधर मेरा चैन गया मेरी नींद गई
ऐ बादशाह्-ए-ख़बाँ-ए-जहाँ तेरी मोहिनी सुरत पे क़ुर्बाँ
की मैं ने जो तेरी जबीं पे नज़र मेरा चैन गया मेरी नींद गई
हुई बद-ए-बहारी चमन में अयाँ गुल बुटी में बाक़ी रही न फ़िज़ा
मेरी शाख़-ए-उम्मीद न लाई सँवर मेरा चैन गया मेरी नींद गई
ऐ बर्क़-ए-तजल्लि बहर-ए-ख़ुदा न जला मुझे हिज्र में शम्मा सा
मेरी ज़ीस्त है मिस्ल-ए-चिराग़-ए-सहर मेरा चैन गया मेरी नींद गई
कहता है यही रो रो के "ज़फ़र" मेरी आह-ए-रसा का हुआ न असर
तेरी हिज्र में मौत न आई अभी मेरा चैन गया मेरी नींद गई
यही कहना था शेरो के आज "ज़फ़र" मेरी आह-ए-रसा में हुआ न असर
तेरे हिज्र में मौत न आई मगर मेरा चैन गया मेरी नींद् गई