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ज़िन्दगी ग़म से भर गई यारो / ज़ाहिद अबरोल

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ज़िन्दगी ग़म से भर गई यारो
शादमानी किधर गई यारो

ज़र्द चेहरे मिले हैं नालः-ब-लब
जिस तरफ़ भी नज़र गई यारो

ज़िन्दगी से जो लड़ते देख लिया
मौत भी हम से डर गई यारो

काश! यह लब भी मुस्करा सकते
एक हसरत थी, मर गई यारो

हुस्न की ताब जो न लाती थी
वो नज़र अब किधर गई यारो

आज कुछ भी नज़र नहीं आता
गर्द हर सू बिखर गई यारो

दास्तां मेरी पेशतर मुझसे
हर गली हर नगर गई यारो

नक़्श था उस के दिल पे नाम मिरा
हाय! वो रूत गुज़र गई यारो

साथ तो छूटना ही था “ज़ाहिद”
ज़िन्दगी क्यूं ठहर गई यारो

शब्दार्थ
<references/>