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याद आना भी जानता है वो / कांतिमोहन 'सोज़'
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याद आना भी जानता है वो ।
भूल जाना भी जानता है वो ।।
दिल लुभाना भी जानता है वो ।
जी जलाना भी जानता है वो ।
दूर जाकर दिखा दिया उसने
पास आना भी जानता है वो ।
मेरे अश्कों ने झाँककर देखा
मुस्कुराना भी जानता है वो ।
ग़ैर ने अब तो कर दिया साबित
नाज़ उठाना भी जानता है वो ।
क्यूँ क़फ़स से न आशना हो लूँ
आशियाना भी जानता है वो ।
सोज़ तो मुफ़्त में ज़लील हुआ
दिल लगाना भी जानता है वो ।।