भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इश्क़ का इम्तिहान है प्यारे / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:10, 2 नवम्बर 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इश्क़ का इम्तिहान है प्यारे ।
अब हथेली पे जान है प्यारे ।।

जैसे मोती बग़ैर हो सीपी
उसके बिन यूँ जहान है प्यारे ।

तेज़ होता है दर्द होने दो
हमको उसकी सुहान है प्यारे ।

ठीक कहते थे लोग पहले के
प्रीत बिन घट मसान है प्यारे ।

शायरी से भी कुछ नहीं हासिल
मुफ़्त की खैंच-तान है प्यारे ।

तीर चलता नज़र नहीं आता
एक ऐसी कमान है प्यारे ।

कल ये चरचा गली-गली होगा
सोज़ की क्या ज़बान है प्यारे ।।