भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ अंधेरो में दीपक जलाओ / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:45, 7 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी }} कुछ अंधेरो में दीपक जलाओ<br> आशियानों क...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ अंधेरो में दीपक जलाओ
आशियानों को अपने सजाओ।

घर जलाकर न यूँ मुफलिसों के
उनकी दुश्वारियाँ तुम बढ़ाओ।

कुछ ख़राबी नहीं है जहाँ में
नेकियों में अगर तुम नहाओ।

प्यार के बीज बो कर दिलों में
ख़ुद को तुम नफ़रतों से बचाओ।

शर्म से है शिकास्तों ने पूछा
जीत का अब तो घूँघट उठाओ।

इलत्ज़ा अशक़ करते हैं देवी
ज़ुल्म की यूँ न हिम्मत बढ़ाओ।