भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ्रेम / अनिरुद्ध उमट
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:26, 15 नवम्बर 2015 का अवतरण
दीवार कोई फ्रेम है
जिसमें रंग छोड़ चुकी तस्वीर वाले आदमी की
पीठ का निशान
नहीं मगर गिर कर टूटे
आईने की किसी किरच की स्मृति
हम जो देखते हैं
हमारी पीठ को जो देखते हैं
वहाँ का फ्रेम टूटा उतना नहीं
जितना धुँधला गया है
हम दीवारों पर अँगुलियाँ फिराते
हमारी पीठ पर कैसी सिहरन होती
और जो दीवार के उस पार खड़ा है
क्या ठीक-ठीक वही है
जो कभी था तस्वीर में
उसकी पीठ पीछे फिर कोई दीवार
जहाँ किसी की पीठ का निशान
पूरा घर कोई अन्तहीन आइनों का सिलसिला
जिस पर आती जाती ठिठकती हवाएँ
शहर में नहीं अब कोई दुकान
दुकान फ्रेम हो
बिखर गयी