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अंतिम बार / अनिरुद्ध उमट

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बरसों से सूखे
कंठ के कुए में
कोई तस्वीर धुँधली सी
है फड़फड़ाती

किसी दिन
नहीं होगी
यह भी

तब क्या मुझे ही
अंतिम बार
कूदना होगा